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लेख

शूमेकर लेवी 9

स्कंद शुक्ल


सन् 1994 में हमने पहली बार अपने परिवार में टकराव देखा था। सौरमंडल में हमारे समीप ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई धूमकेतु किसी ग्रह के प्रभाव से चकनाचूर होकर उसी में जा गिरा हो। शूमेकर लेवी 9 नामक इस धूमकेतु का बृहस्पति में गिरना हमें अपनी पृथ्वी के आसपास मँडराते खतरों से सजग रहने को बता गया। बृहस्पति ही धूमकेतुओं के पथराव का शिकार हो, ऐसा नहीं है; कोई भी ग्रह इनकी जद में आ सकता है।

पृथ्वी के आसपास तमाम पृथ्वी-सन्निकट-पिंडों (नियर अर्थ ऑब्जेक्ट्स) की पुष्टि नासा ने की है। ऐसा माना जाता है कि इनकी संख्या लगभग 20,000 के आसपास है। ऐसा में प्रयास रहेगा कि इनमें से सभी के पथ चिह्नित किए जाएँ और उनपर विशेष नजर रखी जाए, जो पृथ्वी के नजदीक हैं और आकार में बड़े, क्योंकि बड़ा खतरा उन्हीं से पैदा हो सकता है।

शूमेकर लेवी 9 धूमकेतु कई मायनों में विशिष्ट था। पहली बात तो यह कि सामान्य धूमकेतुओं की तरह यह सूर्य की परिक्रमा नहीं, बल्कि एक ग्रह बृहस्पति की परिक्रमा लगा रहा था। संभवतः बृहस्पति के अपने गुरुत्व के प्रभाव से इस धूमकेतु का लगभग बीस-तीस वर्ष पहले अपहरण कर लिया होगा और तब से यह उसी के चारों ओर रह गया।

इस धूमकेतु को सन् 1993 में ही पहली बार देखा गया। यानी दृश्यमान होने के एक वर्ष के भीतर इसकी मौत भी हो गई। बृहस्पति के चारों ओर घूमते हुए यह उसकी रॉश-सीमा पार कर गया और इसी कारण इस विशाल गैसीय दानव ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। रॉश-सीमा किसी भी बड़े पिंड के चारों ओर वह सीमा होती है, जिसके भीतर प्रवेश करने पर छोटा पिंड चूर-चूर हो जाता है। ऐसा बड़े पिंड के प्रभाव के कारण होता है और छोटा पिंड उससे अपने-आप को बचा नहीं पाता।

इस धूमकेतु के टकराव से बृहस्पति-जैसा बड़ा ग्रह भी अछूता न रह सका। उसपर कई ऐसे प्रभाव पैदा हुए, जिनका वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक अध्ययन किया। ग्रह के गैसीय वायुमंडल पर कई भूरे धब्बे नजर आने लगे, जो कई गंधक-युक्त रसायनों के कारण थे और कई महीनों दिखाई दिए। यहाँ तक कि पाया गया कि बृहस्पति के चारों ओर के छल्लों में एक हल्का टेढ़ापन इस धूमकेतु की टक्कर के कारण पैदा हो गया। (ज्ञात हो कि केवल शनि ही वह ग्रह नहीं, जिसके चारों ओर वलय या छल्ले हैं। अन्य तीन गैसीय ग्रहों बृहस्पति-यूरेनस-नेप्ट्यून के भी हैं।)

बृहस्पति का हमारे पास होना, उस वैज्ञानिक परिकल्पना को बलवती करता है, जिसे विरल पृथ्वी-परिकल्पना या रेयर अर्थ हायपोथीसिस कहा जाता है। हर ग्रह पर जीवन हो नहीं सकता, क्योंकि उसके पास बृहस्पति जैसा कोई नहीं है, जो उल्काओं और धूमकेतुओं को लील सके। जीवन का क्रमशः जटिल होना लंबा समय माँगता है, और आसमान में हर तरफ से मौत की आवाजाही है। ऐसे में कौन जीवाणुओं से भरे किसी नीले ग्रह पर इनसानों सी जटिल प्रजाति पनपने का अवसर देगा ?

पृथ्वी सौभाग्यशालिनी है कि उसके पास बृहस्पति है।


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